
भारतीय अखंडता के लिए अनिवार्य है देववाणी संस्कृत का पठन-पाठन………..
- ….आयुष द्विवेदी
अखिल भारतीय पुरोहित महासंघ के महासचिव ,संस्कृत भाषा के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे,संस्कृत प्रचारक आयुष द्विवेदी जी ने गत् दिनों एक आनलाइन संस्कृत कक्षा को सम्बोधित करते हुए कहा कि यदि हमें पुनः विश्वगुरु के शीर्ष पर पहुंचना है तो संस्कृत भाषा को पढ़ना अति आवश्यक है।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया
ऐसी विश्व मंगल कामना केवल संस्कृत में ही की गई है।
आयुष द्विवेदी जी ने बताया कि भारत सदैव से ही नारी प्रधान देश रहा है।
महार्षि मनु द्वारा रचित मनु स्मृति में लिखा है……..
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता
अर्थात हमारे शास्त्र भी नारी की महिमा का बखान करते हैं।
सर्व प्रथम खगोल विज्ञान के क्षेत्र में शोध करने एवं गणित को उसका अभिन्न अंग शून्य देने वाले आचार्य आर्यभट्ट जी भी संस्कृत के ही विद्वान थे।
भूमंडल में योग, भौगोलिक स्थिति, नक्षत्र मंडल आदि की गणना सर्वप्रथम संस्कृत आचार्यों ने ही की।
संस्कृत को पढ़कर ही बालक का पूर्ण विकास सम्भव है।
आयुष द्विवेदी जी ने लोगों से लोगों से आग्रह किया कि हमे अपने सर्वस्व ज्ञान को समझने, एवं बालक के स्वर्णिम विकास के लिए देववाणी संस्कृत का पाठन करवाना अति आवश्यक है।
आयुष द्विवेदी जी विगत तीन वर्षों से संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार के लिए निस्वार्थ भाव से अपनी सेवा दे रहे।
वे देववाणी को समृद्ध बनाने के लिए अब तक, गुजरात, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, आदि अनेक राज्यों का दौरा कर चुके हैं।
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भारतीय अखंडता के लिए अनिवार्य है देववाणी संस्कृत का पठन-पाठन………..
….आयुष द्विवेदी
अखिल भारतीय पुरोहित महासंघ के महासचिव ,संस्कृत भाषा के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे,संस्कृत प्रचारक आयुष द्विवेदी जी ने गत् दिनों एक आनलाइन संस्कृत कक्षा को सम्बोधित करते हुए कहा कि यदि हमें पुनः विश्वगुरु के शीर्ष पर पहुंचना है तो संस्कृत भाषा को पढ़ना अति आवश्यक है।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया
ऐसी विश्व मंगल कामना केवल संस्कृत में ही की गई है।
आयुष द्विवेदी जी ने बताया कि भारत सदैव से ही नारी प्रधान देश रहा है।
महार्षि मनु द्वारा रचित मनु स्मृति में लिखा है……..
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता
अर्थात हमारे शास्त्र भी नारी की महिमा का बखान करते हैं।
सर्व प्रथम खगोल विज्ञान के क्षेत्र में शोध करने एवं गणित को उसका अभिन्न अंग शून्य देने वाले आचार्य आर्यभट्ट जी भी संस्कृत के ही विद्वान थे।
भूमंडल में योग, भौगोलिक स्थिति, नक्षत्र मंडल आदि की गणना सर्वप्रथम संस्कृत आचार्यों ने ही की।
संस्कृत को पढ़कर ही बालक का पूर्ण विकास सम्भव है।
आयुष द्विवेदी जी ने लोगों से लोगों से आग्रह किया कि हमे अपने सर्वस्व ज्ञान को समझने, एवं बालक के स्वर्णिम विकास के लिए देववाणी संस्कृत का पाठन करवाना अति आवश्यक है।
आयुष द्विवेदी जी विगत तीन वर्षों से संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार के लिए निस्वार्थ भाव से अपनी सेवा दे रहे।
वे देववाणी को समृद्ध बनाने के लिए अब तक, गुजरात, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, आदि अनेक राज्यों का दौरा कर चुके हैं।
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